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17:19, 24 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
आवणो है थनै
सोनलिया धोरां
ताळाब-बावड़ी
दरखत अर खेतां रै
साम्हीं देख।
म्हैं जाणूं
इंदर रो टैम
सावण रै सागै
म्हारै कानी देख
बगत ई
थारै आवण री।
थारै आयां
लबालब हुय जासी
महकसी माटी
हरिया टांच दरखत अर खेत
लागतै भादवै
बरस, बरस, बरस!
</poem>