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|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
म्हारै गांव री पंचायत मांय
म्हारी मा कीं बोल नीं सकै
डोकरी हुयगी मा
फकत गूंगी होयÓर रैवणो पड़ै
पंचायत री सभा मांय।

गांव री पीड़ री बंतळ
नीं कर सकै सरपंच हुवता थकां ई
मा रै मूंढै माथै ताळो है
खोल नीं सकै मा इण ताळै नै
बैठी है मा सरपंच री कुरसी माथै
कूंची इण ताळै री
राज कनै दिल्ली मांय पड़ी रमै।

म्हारा काकोसा नीं बोल सक्या
जैपुर री पंचायत मांय
आपां जाणां कै काकोसा भण्योड़ा है
पण बठै बाकै रै तुरपाई कर दीनी राज
काकोसा कियां राखै आपरी ओळखाण
कियां बतावै म्हारै स्हैर री विगत
राज कनै है सूई
जिकै सूं बाको सींयो है।
म्हारी भासा ई म्हारी मा है
म्हे अर म्हारी मा
नीं कर सकां बंतळ आपस मांय
भरी पंचायत
रोक देवै राज
कैवै सगळां रै बिचाळै
नीं बोल सको थांरी मा रै सागै।

म्हारा दादोसा सुरग सिधारग्या
मूंढै माथै ताळो हो
नीं बताय सक्या
आपरी हारी-बीमारी
नीं सुण्यो, राज रै डाक्टरां।

रोज दिनूगै म्हारी मा रोवती-रोवती
विलाप करै
कांई हुसी म्हारै आं टाबरां रो
जिकां सूं म्हैं बोल नीं सकूं।
स्कूल मांय टाबरां सूं मास्टर बंतळ नीं करै।

म्हैं कांई करूं, इण राज रो
अबै थूं ई है सांवरा!
म्हारी मा रो पालणहार
बिना आपस मांय बोल्यां ई
जावणो पड़सी।

म्हैं जावूं अबै—
कदास कोई कवि तो बोलैला!

</poem>
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