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07:09, 27 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[लक्ष्मीनारायण रंगा]]
|अनुवादक=
|संग्रह=आंख ई समझै / लक्ष्मीनारायण रंगा
}}
{{KKCatHaiku}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
तिरणो है तो
गै‘रै सागर तिर
आणंद आसी
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मोमाखी भी
करै है भिण-भिण
छातो छेड़िया
{{KKBR}}
सुपनो चावै
सुख रो कै दुख रो
जीवणो पड़ै
</poem>
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