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बंद दरवाज्जा / कविता भट्ट
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खिड़कियाँ बी हैं उदास
खुलण की नहीं बची आस,
पर सच कहूँ !
बेर
बेरा
नी क्यूं
इन सार्याँ नै है
हवा पै बिस्वास्।
वीरबाला
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