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बंद दरवाज्जा / कविता भट्ट

4 bytes added, 17:53, 8 अगस्त 2018
खिड़कियाँ बी हैं उदास
खुलण की नहीं बची आस,
पर सच कहूँ ! बेर बेरा नी क्यूं
इन सार्याँ नै है
हवा पै बिस्वास्।