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प्राण सींचती / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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20:33, 20 अगस्त 2018
तुम्हारे लिए ही मैं
दुआएँ माँगूँ ।
5
अंक में भरो
उलझी नेह -डोर
सुलझा भी दो।
6
प्राण अटके
तुम न मिल सके
हम भटके।
</poem>
वीरबाला
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