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18:18, 22 अगस्त 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ललित कुमार
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<poem>
'''जब-जब पाप बढया पृथ्वी पै, शंकर जी नै अवतार लिया,'''
'''उस परमपिता-परमात्मा प्रभु नै, पूरा-ऐ-उन्नीस बार लिया || टेक ||'''
पहली बार वीरभद्र बण्या, भय से भागे अन्याई,
दूसरी बार पिप्लाद बण्या, चढी शनिदेव की करड़ाई,
तीसरी बार शिलाद सुत बण, शिवाना से शादी करवाई,
चौथी बार भैरू बणकै, ब्रह्मा की गर्दन काट गिराई,
पांचवी बार वृषभ बणकै, विष्णु पुत्रो को मार लिया ||
छठी बार नरसिंह डाटया, श्रभा रूप समान होया,
सातवी बार गृहपति बण्या, धर्मपुर मै ध्यान होया,
आठवी बार दुर्वाषा बण्या, आदमदेह ज्ञान होया,
नौमी बार सर्वश्रेष्ठ, अंजनी सुत हनुमान होया,
दसमी बार सुरेश्रव बण्या, उपमन्यु से उपहार लिया ||
ग्यारहवी बार यतिनाथ बण्या, आहुक भील नै घर पै डांटया,
बारहवी बार कृष्णदर्शन बण, धर्म-कर्म का न्या छांटया,
तेरहवी बार अव्दीप बण्या, इन्द्रदेव का भी तोल पाट्या,
चौहदवी बार भिक्षुकवीर्य बण, सत्यार्थ का संकट काटया,
पन्द्रवी बार द्रोण के घर पै, अश्वथामा रूप धार लिया ||
सोलहवी बार किरात बण्या, मूढ़दैत्य को मार गिराया,
सतरहवी बार नटराज बणकै, हिमाचल घर नाच दिखाया,
अठारहवी बार ब्रह्मचारी बण, पार्वती की करी सिली काया,
उन्नीसवी बार यक्ष बण्या, देवो का अभिमान तोड़ बगाया,
कहै ललित यो लिख्या लेख मै, मनै बोहते सोच-विचार लिया ||
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