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|रचनाकार=ललित कुमार
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<poem>
'''हो बन्दे! मतकर मान-गुमान, या जिंदगी सुपने कैसी माया,'''
'''ऐसा जग मै कौण जण्यां, जो नहीं काळ नै खाया || टेक ||'''

ब्रह्मा जी पै वर लेकै, हिरणाकुश नै अहंकार करया,
12 मिह्ने दिन-रात मरुँ ना, हिरणाकुश नहीं डरया,
हरि नै नरसिंहां रूप धरया, हिरणाकुश मार गिराया ||1||

उग्रसेन महात्मा कै, एक खोटा अंश हुआ,
कालनेमि के रजवीर्य से, पवन रेखां कै कंश हुआ,
वो मथुरा मैं विध्वंश हुआ, हरि नै श्याम रूप बणाया ||2||

अहंकार नै मति मारी, उस दशानन रावण की,
वो विद्वान भी गलती करग्या, सीता नै ठावण की,
सुणी जब काळ के आवण की, घबराग्या विश्वासुर का जाया||3||

गुरु ब्रहस्पति का मान मारया, इंद्र विश्वेबीस नै,
गुरु बिना ज्ञान नहीं, सुमर ललित जगदीश नै,
दे मिटा ज्ञान की तिस नै, तेरी आनंद होज्या काया ||4||
</poem>
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