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|रचनाकार=ललित कुमार
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<poem>
'''सिणी-सांपण बीर बिराणी, ये तीनूं-ऐ बुरी बताई,'''
'''नर-किन्नर देवता मोहे, होवै खोटी बीर पराई || टेक ||'''

त्रिया कारण त्रिलोकी नै, लित्तर गांठे वन मैं,
श्रध्वान का ध्यान डीग्या, उर्वशी बसगी मन मैं,
बीर के कारण विष्णु कै, लागी लाग बदन मैं,
शीलनदी पै नारद का होया, मुंह बंदर का छंन मैं,
चन्द्रवती पै हुआ आशिक ब्रह्मा, खुद बेटी पै नीत डिगाई ||

अहिल्या पै होया आशिक, इंद्र देवों नै दुद्कारया,
हूर मेनका नै विश्वामित्र, दे धरती पै मारया,
इन्द्राणी कारण नहुष भूप भी, स्वर्ग तै नीचै डारया,
बीर के कारण बाहु का सिर, परशुराम नै तारया,
वेदवती तक रावण मरग्या, जो बणी जनक की जाई ||

सिंध-उपसिन्ध माँ जाऐ मरगे, तिलोमना पै डीग्या ध्यान,
चन्द्रवती नै उद्दालक का, ख़ाक मै मिलाया ज्ञान,
त्रिया कारण लागी स्याही, चन्द्रमा की बिगड़ी श्यान,
कुब्जा परी नै श्री कृष्ण मोह्या, उस योगी का घटया मान,
महाभिषेक भी स्वर्ग तै ताह्या, मन बसगी गंगेमाई ||

कहै ललित बीर के कारण, चढ्या भार ब्रहस्पति पै,
भस्मासुर भी भस्म होया, होकै आशिक पार्वती पै,
उमा कारण बलि मरग्या, पड़े पात्थर मूढ़मती पै,
द्रोपदी नै कीचक मरवाया, वो डिगग्या नार सती पै,
कामदेव मै फंस पाराशर नै, तप की बलि चढ़ाई ||
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