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18:30, 23 अगस्त 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ललित कुमार
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'''सुपने के म्हा घणा विश्वास, करया ना करते माता,'''
'''सौ सुतों की जननी होकै, न्यूं डरया ना करते माता, || टेक ||'''
कौन तेरे पूत कै स्याह्मी देखै, इतणी तो औकात कोनी,
मनै दास बणाकै बण भेजे, उन पांडवा कै जात कोनी,
तेरे सुसोधन की मार ओटले, इसा बज्जर कैसा गात कोनी,
पीली पाटै टूटै सुपना, माँ या सारी हांणा रात कोनी,
दुश्मन कोसे तै शेर-सुरमा, न्यू मरया ना करते माता ||
तेरे दुर्योधन कै आगै तो माँ, यो भूमंडल भी थररावै सै,
यो सेना-सागर देख मेरा माँ, इंद्र भी भय खावै सै,
रणभूमि मै देख्या जागा, कौण-किसतै टकरावै सै,
या दुर्योधन की गदा चलै जब, पान्चुवा नै धुल चटावै सै,
मन मै सोचे तै खून के खप्पर, न्यू भरया ना करते माता ||
भीष्म पिता नै इच्छा मृत्यु, कौन रण मै मारैगा,
द्रोण-कर्ण दुश्साशन भाई, किसतै रण मै हारैगा,
शुक्नी मामा वक्त पड़े पै, सारी बात विचारैगा,
अश्वथामा नै दिए वचन, वो मेरे दुश्मन के सर तारैगा,
करतब बिना कारज किसे के, न्यू सरया ना करते माता ||
सुपने की सोच मै होई बावली, सुपना तो आंणी-जाणी हो सै,
फुंस की आग-समान सुपना, ओस जैसा पाणी हो सै,
अनमोल रत्न अमृत-तुल्य, या सतगुरुआ की बाणी हो सै,
कहै ललित बुवाणी आला, या छोटी कांशी भिवाणी हो सै,
समझदार नर सुपने के सिर, न्यूं दोष धरया ना करते माता ||
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