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12:04, 12 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशाकर
|अनुवादक=
|संग्रह=ककबा करैए प्रेम / निशाकर
}}
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<poem>
लोक कन्यापूजन करैत अछि
कन्याकें भोजन करबैत अछि
पयर छुबैत अछि
दक्षिणा दैत अछि
मुदा,
दोसरे दिनसँ बिसरि जाइत अछि
अपन दायित्व
कन्याकें मारैत अछि
गारि पढ़ैत अछि
कन्या-भ्रूणक हत्या करैत अछि
बलात्कार आ सामूहिक बलात्कार करैत अछि।
कन्याकें पूजबाक नहि
ओकरा पढ़यबाक
गढ़बाक
आ, पोसबाक खगता अछि।
</poem>