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अंदरक गंगा / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
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12:24, 12 सितम्बर 2018
{{KKRachna
|रचनाकार=निशाकर
|अनुवादक=
|संग्रह=ककबा करैए प्रेम / निशाकर
}}
{{KKCatAngikaRachna}}
<poem>
हमरा अंदर बहैत अछि
एकटा गंगा
पुलिसक बढ़ि जाइत छैक
आमदनी।
</poem>
Jangveer Singh
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