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|संग्रह=ककबा करैए प्रेम / निशाकर
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<poem>

अहाँ
ओहि राति
हमर देह पर कयने रही
नखदेख
दशछेद
आइ धरि रहि गेलइए
ओकर चेन्ह।

अहाँ
आइ नहि छी
हमरा लग
चेन्ह अछि
चेन्हकें छुबै छी
चुम्मा लै छी
अहाँ मोन पड़ै छी।

अहाँक देल चेन्ह रहइए
हमरा लग
हमर प्रेमक पूँजी अछि
चेन्ह।


</poem>
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