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चरवाहा / सुरेन्द्र स्निग्ध

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पृथ्वी पुनः हो जाएगी गतिशील
दिक्-दिगंत दिगन्त तक फैल जाएँगी हरियालियाँ
कभी सूखेंगे नहीं आँसू, रुकेगा नहीं दूध
ममता और करुणा की बेली लहराती रहेगी
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