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रात का रतजगा / सुधीर सक्सेना
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12:45, 17 सितम्बर 2018
|रचनाकार=सुधीर सक्सेना
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|संग्रह=
अर्धरात्रि
अर्द्धरात्रि
है ये ... / सुधीर सक्सेना
}}
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अर्धरात्रि
अर्द्धरात्रि
है ये
मगर कोई भी रात्रि आख़िरी रात नहीं
भला, भोर के लिए
कब थी इतनी लालायित
अर्धरात्रि
अर्द्धरात्रि
?
</poem>
अनिल जनविजय
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