870 bytes added,
21:25, 18 सितम्बर 2018
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशाकर
|अनुवादक=
|संग्रह=गंग नहौन / निशाकर
}}
{{KKCatAngikaRachna}}
<poem>
एहि बेर
सिमरिया घाटमे
भरि मोन नहैलियै
ने पाण्डाकें द्रव्यदान देलियै
ने फूल-परसाद चढ़ेलियै
ने धूप-अगरबत्ती देखैलियै
मंगनियेमे लुटि लेलियै
गंगा स्नानक अपार सुख।
बालु
सटल अएलै
हमर संग-संग
हमर घर-आँगन धरि
हमर अंगाक जेबीमे
अपन हाजरी बनबैत
गंगाकें मोन पाड़ैत।
</poem>