{{KKCatPad}}
<poem>
इन्होंने अपने समय मे सामयिक पत्रों में समस्या-पूर्त्तियाँ करने में विशेष भाग लिया। इनके सम्बन्ध में नेकौ एक रोचक प्रसंग उल्लेख-योग्य है। उन्हीं दिनों बलदेवप्रसाद अवस्थी नाम के एक कवि अबध के राजा प्रताप बहादुरसिंह के यहाँ राजकवि के रूप में रहते थे। इनकी भी समस्या-पूर्त्तियाँ बड़ी टकसाली होती थीं। चन्द्रकलाजी पर बलदेव जी केश की कवित्त्व-शक्ति का बड़ा प्रभाव पड़ा और उन्होंने उनसे पत्र-व्यवहार करके बूँदी आने न समता सुकेशी लहै,नैनन के लिए निमंत्रित किया। पत्र के साथ उन्होंने निम्नलिखित सवैया भी लिख भेजी थी:-आगे लागै कमल रुमाली। दीन-दयाल दया कै मिलोतिल सी तिलोत्तमाहू रति हू सी लगे,दरसे बिनु बीतत हैं समै सोचन।समनुख ठाढ़ रहै लाल हित लालची॥सुद्ध सतोगुण ही के सने ते‘चन्द्रकला’ दान आगे दीन कल्पवृक्ष लागै,बिसंकित सूल सनेह सकोचन॥तोरि दियो तरु धीर-कगार वैभव के,आगे लागे इन्द्रहू कुदालची।ह्वै सरिता मनो बारि विमोचन।चन्द्रकला के बने बलदेवजीधन्य धन्य राधे बृषभानु की दुलारी तोहिं,बावरे से महा लालची लोचन॥जाके रूप आगे लगे चन्द्रमा मसालची॥
</poem>