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प्रलय-संकेत / विष्णु खरे
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11:41, 20 सितम्बर 2018
'''प्रलय-संकेत'''
'''(तुभ्यमेव
भगवंतं वेदव्यासं
भगवन्तम् वेदव्यासम्
)'''
दिवस और रात्रि में कोई अन्तर नहीं कर पाता मैं दोनों समय ऐसे दीखते हैं जैसे सूर्य चन्द्र नक्षत्रों से ज्वालाएँ उठती हों
अनिल जनविजय
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