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प्रलय-संकेत / विष्णु खरे

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'''प्रलय-संकेत'''
'''(तुभ्यमेव भगवंतं वेदव्यासंभगवन्तम् वेदव्यासम्)'''
दिवस और रात्रि में कोई अन्तर नहीं कर पाता मैं दोनों समय ऐसे दीखते हैं जैसे सूर्य चन्द्र नक्षत्रों से ज्वालाएँ उठती हों
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