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|रचनाकार=वसीम बरेलवी
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|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
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<poem>
वो बे-हिसी के दिन आये कि कुछ हुआ न लगा
कब उसको भूल गये ये भी तो पता न लगा

बिछड़ते वक़्त दिलासे, न खोखले वादे
वह पहली बार मुझे आज बेवफ़ा न लगा

जहां पे दस्तकें पहचान के जवाब मिले
गुज़र भी ऐसे मकां से हो तो सदा न लगा

यह देखने का सलीक़ा भी किसको आता है
कि उसने देखा मुझे और देखता न लगा

'वसीम' अपने गरेबाँ में झांककर देखा
तो अपने चारों तरफ कोई भी बुरा न लगा।

</poem>
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