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05:16, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=[[अजय अज्ञात]]
|अनुवादक=
|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
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<poem>
महिमा अपरंपार तुम्हारी गंगा जी
भव सागर से पार लगाती गंगा जी
गौमुख से गंगा सागर तक अमृतमय
बहती अविरल धार निराली गंगा जी
निर्मल जल अंतस को देता शीतलता
अंतर्मन की प्यास बुझाती गंगा जी
सिंचित करती संस्कारों को धरती पर
जन जन के संत्रास मिटाती गंगा जी
पूनम का जब चाँद चमकता है नभ में
सब को शाही स्नान कराती गंगा जी
</poem>