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{{KKRachna
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|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
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<poem>
हों ऋचायें वेद की या आयतें कुर्आन की
राह दोनों ही दिखाती हैं हमें ईमान की

बाइबल औ ग्रंथ साहिब का भी ये पैग़ाम है
हो सभी के वास्ते सद्भावना इंसान की

चाय के प्याले के संग दो चार बिस्किट रख दिए
अब नहीं पहली सी ख़ातिर होती है महमान की

मत *तअस्सुब पालिये अपने दिलों में दोस्तो
प्यार से मिल कर रहो है माँग हिंदुस्तान की

आपसी विश्वास हर संबंध की बुनियाद है
चाह है ‘अज्ञात' सब को आप सी सम्मान की
</poem>
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