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06:02, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[अजय अज्ञात]]
|अनुवादक=
|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
अधरों की मुस्कान है बेटी
घरआंगन की शान है बेटी
जाती है ससुराल सँवर कर
अपने घर मह्मान है बेटी
करती निश्छल प्रेम सभी से
हर रिश्ते की जान है बेटी
मूरत है ममता‚ करुणा की
क़ुदरत का वरदान है बेटी
चूल्हा-चौका खूब संभाले
रखती सबका ध्यान है बेटी
कहता है ‘अज्ञात' सभी से
सर्वोत्तम संतान है बेटी
</poem>