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06:17, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[अजय अज्ञात]]
|अनुवादक=
|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
दिखने की चीज़ है न दिखाने की चीज़ है
उल्फ़त तो यार दिल से निभाने की चीज़ है
बेशक है धन ज़रूरी गुजारे के वास्ते
इज्ज़त भी यार जग में कमाने की चीज़ है
यारो भलाई कर के जताते हो किस लिए
नेकी तो रोज़ कर के भुलाने की चीज़ है
रहने दो राज़ कुछ तो कलेजे में दफ़्न तुम
हर बात कब किसी को बताने की चीज़ है
‘अज्ञात' मत नुमाया इबादत को तुम करो
नामे-ख़ुदा तो दिल में बसाने की चीज़ है
</poem>