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06:26, 29 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[अजय अज्ञात]]
|अनुवादक=
|संग्रह=इज़हार / अजय अज्ञात
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
बात सच्ची थी भले कड़वी लगी
साफगोई आप की अच्छी लगी
जानने को हूँ बहुत आतुर कहो
आप को मेरी ग़ज़ल कैसी लगी
उर्वशी थी या कि कोई मेनका
हू ब हू वह आप के जैसी लगी
रिश्ते में लगती हो तुम माँ की बहिन
इसलिए तुम मेरी भी मौसी लगी
देख कर मेरी तरक्की बोलिये
आपको है किस लिये मिर्ची लगी
</poem>