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{{KKRachna
|रचनाकार=अजय अज्ञात
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|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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<poem>
क्या पता था आईना यूँ बेवफ़ा हो जाएगा
सामने इक अजनबी आ कर खड़ा हो जाएगा

ख़ामुशी करने लगेगी मुझ से जब सरगोशियाँ
ज़्ााविया मेरे तसव्वुर का नया हो जाएगा

उसकी रहमत की अगर होने लगेंगी बारिशें
शाख़ का हर ज़र्द पत्ता फिर हरा हो जाएगा

प्यार के दो बोल मीठे बोल ले मुझ से कोई
फिर यक़ीनन सारा मंज़र ख़ुशनुमा हो जाएगा

तू अगर यह सोचता है तो ग़लतफ़हमी में है
‘ख़ुदनुमाई से तेरा रुतबा बड़ा हो जाएगा’
</poem>
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