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03:43, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अजय अज्ञात
|अनुवादक=
|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जहाँ से ख़ुशबुओं का सिलसिला है
हमारा बस वहीं दौलतकदा है
अँधेरों से कहो अब दूर भागें
मुहब्बत का उजाला हो रहा है
कि मेरा हौसला बढ़ता है तुझ से
मुख़ालिफ़, तू ही मेरा रहनुमा है
अगर तू सुन सके तो ग़ौर से सुन
मेरे अंदर का इन्सां मर चुका है
यूँ लगता है ‘अजय’ चश्मे का पानी
शुआ-ए-हुस्न से उबला हुआ है
</poem>