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04:38, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अजय अज्ञात
|अनुवादक=
|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
दरमियाँ के फ़ासले सब मिट गए
गुफ़्तगू से मसअले सब मिट गए
साथ जब ले कर चला माँ की दुआ
मुश्किलों के ज़लज़ले सब मिट गए
आ गयी है उम्र ऐसे मोड़ पर
झूठे सच्चे चोंचले सब मिट गए
फ़ेसबुक पर दब गया ऐसा बटन
यार जो थे दोगले सब मिट गए
इक मुक़द्दर का लिखा न मिट सका
और बाक़ी फ़ैसले सब मिट गए
</poem>