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05:07, 2 अक्टूबर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
|अनुवादक=
|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
}}
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<poem>
मेरी आंखों को यह सब कौन बताने देगा
ख़्वाब जिसके हैं, वही नींद न आने देगा
उसने यूँ बांध लिया खुद को नये रिश्तों में
जैसे मुझ पर कोई इल्ज़ाम न आने देगा
सब अंधेरों से कोई वादा किये बैठे हैं
कौन ऐसे में मुझे शमअ जलाने देगा
वह भी आंखों में कोई ख़्वाब लिए बैठा है
यह तसव्वुर ही कभी नींद न आने देगा
अब तो हालात से समझौता ही कर लीजे 'वसीम'
कौन माज़ी की तरफ लौट के जाने देगा।
</poem>