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11:53, 3 अक्टूबर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जंगवीर सिंंह 'राकेश'
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|संग्रह=
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<poem>
दिल की मस्ती में रंग आता है
जब कोई आँख से पिलाता है
एक मैख़्वार मुझसे कहता है
तू मेरी तरह लड़खड़ाता है
दिल किसी मय से कम नहीं रहता
जब तेरे ग़म में डूब जाता है
सर्द हो जाता है बदन मेरा
जब वो मुझसे गुज़र के जाता है
चाहे जितना संभाल लें आँखे
मेरा हर ख़्वाब टूट जाता है
बुझ रहा हूँ किसी दिए-सा मैं
और ख़ुदा है, हवा चलाता है
'वीर' काेेई फ़रिश्ता हो गया क्या?
जो भी कहता है सच हो जाता है।
</poem>