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इस कलम से आज कवि तुमतक जीता रहा विश्वास लेकर, एक नया संसार लिख दो। वेदनाओं में मुखर उल्लास लेकर,हो नहीं समता जहाँ विश्व पर, तुम वहाँ अंगार लिख दो। मानव जरा विश्वास तो कर।
आज लिख दो आँसुओ अश्रुओं से पूछ लो विश्वास मेरा, एक ख़ुशी का गान कोई. खोज करुणा की कड़ी में हास मेरा,आस है दर्द में डूबे मनुज केपीछे मगर विश्वास पहले, अधर पर मुस्कान कोई. जिंदगी पीछे चले तो श्वांस पहले,
हर ख़ुशी के कोष पर तुम, मनुज का अधिकार लिख दो। इस कलम से आज कवि तुम, एक नया संसार लिख दो। धीर दे रही सदियों से धरती, अन्न, जलमैं धारे हुए हूँ प्यास लेकर, जीवन सहारा। पर सहमकर जी रही हैपाणि में हूं पात्र सूना पास लेकर, आज यमुना गंग धारा। तक जीता रहा विश्वास लेकर।
जो मिटाये इस धरा कोमिल सकेंगे राम मेरे , तुम उन्हें धिक्कार लिख दो। इस कलम से आज कवि तुममैं भरत हूँ, एक नया संसार लिख दो। आज कैसा वक़्त आयाओ मधुर विश्वास !तुझमें लीन रत हूं, भाईमैं नहीं म्रिय -भाई को न जाने। माण ! मेरे प्राण कहते,सब खिंचे से जी रहे हैंआंसुओं में जागकर अरमान कहते, बात किसकी कौन माने।
नफ़रतों जागती रजनी नयन में प्रात लेकर,जोहता हूं बाट कंपित गात लेकर,आज तक जीता रहा विश्वास लेकर । एक है विश्वास जिस पर जी रहा जग, एक ही पाथेय जिससे कट रहे मग,सत्य ,मैं दो पल सुधा को भूलकर कब,पी चुका विश्वास का जब मदिरा आसब, खूब छककर पी चुका जब हास लेकर,ठोकरें दे तुम मिटाकर गए परिहास देकर, आज केवल प्यार लिख दो। तक जीता रहा विश्वास लेकर। इस कलम से आज कवि जी रही विश्वास पर शबरी मिलन की,जोहती है चातकी भी राह घन की,चीर ले लो द्रौपदी! विश्वास का तुम, एक नया संसार लिख दो।खोल गोपन दर्द के इतिहास का तुम, लो समझ, कब तक चलूं इतिहास ले कर,जा चुके पतझड़ सदा मधुमास देकर,आज तक जीता रहा विश्वास लेकर। मैं अगर विश्वास छोड़ूं आज अपना, दूर कर विश्वास तज दूं काज अपना,तो न क्षण भर भी टिकेगा नाम मेरा,नाम मनुज विश्वास करना काम मेरा, जग कहेगा अंत में भी लाश लखकर,आज मानव चल चुका उच्छ्वास लेकर,आज तक जीता रहा विश्वास लेकर।
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