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नागिन / हरिवंशराय बच्चन

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शेष अपने प्रतिकूल गुणों की सब माया तू संग दिखाती है, भ्रम, भय, संशय, संदेहों से काया विजडि़त हो जाती है, फिर एक लहर-सीआती है, फिर होश अचानक होता है, विश्‍वासी आशा, निष्‍ठा, श्रद्धा पलकों पर छाती है; तू मार अमृत से सकती है, अमरत्‍व गरल से दे सकती, मेरी मति सब सुध-बुध भूली तेरे छलनामय लक्षण में; नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन, मेरे जीवन के आँगन में!  पिपरीत क्रियाएँमेरी भी अब होती हैं तेरे आगे, पग तेरे पास चले आए जब वे तेरे भय से भागे, मायाविनि क्‍या कर देती है सीधा उलटा हो जाता है, जब मुक्ति चाहता था अपनी तुझसे मैंने बंधन माँगे, अब शा‍ंति दुसह-सी लगती है, अब मन अशांति में रमता है, अब जलन सुहाती है उर को, अब सुख मिलता उत्‍पीड़न में; नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन, मेरे जीवन के आँगन में!  तूने आँखों में आँख डाल है बाँध लिया मेरे मन को, मैं तुझको कीलने चला मगर कीला तूने तन को, तेरी परछाई-सा बन मैं तेरे संग हिलता-डुलता हूँ, मैं नहीं समझता अलग-अलग  अब तेरे-अपने जीवन को, मैं तन-मन का दुर्बल प्राणी, ज्ञानी, ध्‍यानी भी बड़े-बड़े हो दास चुके तेरे, मुझको क्‍या लज्‍जा आत्‍म-समर्पण में; नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन, मेरे जीवन के आँगन में!  तुझ पर न सका चल कोई भी मेरा प्रयोग मारण-मोहन, तेरा न फिरा मन और कहीं फेंका भी मैंने उच्चाटन, सब मंत्र, तंत्र, अभिचारों पर तू हुई विजयिनी निष्‍प्रयत्‍न, उलटा तेरे वश में आया मेरा परिचालित वशीकरण; कर यत्‍न थका, तू सध न सकी मेरे छंदों के बंधन में; नर्तन कर, नर्तन कर, नागिन, मेरे जीवन के आँगन में!  सब सास-दाम औ' दंड-भेद तेरे आगे बेकार हुआ, जप, तप, व्रत, संयम, साधन का असफल सारा व्‍यापार हुआ, तू दूर न मुझसे भाग शीघ्र ही टंकित सकी, मैं दूर न तुझसे भाग सका, अनिवारिणि, करने को अंतिम निश्‍चय, ले मैं तैयार हुआ- अब शंति, अशांमति, माण,जीवन या इनसे भी कुछ भिन्‍न अगर, सब तेरे पिषमय चुंबन में, सब तेरे मधुमय दंशन में! नर्तन कर, नर्तन कर दिए जाएंगे।, नागिन, मेरे जीवन के आँगन में!
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