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ख़लीलुर्रहमान आज़मी की याद में / शहरयार
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20:12, 28 जुलाई 2008
किस मंज़िल, किस मोड़ पर बिछड़ा
ओस में भीगी यह
प्गडंडी
पगडंडी
आगे जाकर मुड़ जाती है
अनिल जनविजय
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