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मेरे भी पांव में रस्ते बहोत हैं / जंगवीर सिंंह 'राकेश'
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07:06, 5 दिसम्बर 2018
हमारे हिज्र<ref>जुदाई, अकेलापन</ref> के किस्से बहोत हैं
अमां जाओ, तुम्हें दौलत
मुबारक
मुबारक़
!
हमारे ख़्वाब भी महँगे बहोत हैं
जहाँ पर चाहें हम बुनियाद रख दें
हम अपनी
ज़िद्द
ज़िद
के पक्के बहोत हैं
तुम्हारे हाथ में मंज़िल अगर है
Jangveer Singh
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