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जे छलै अभिशप्त मानव / एस. मनोज

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जे छलै अभिशप्त मानव वैह एखन अछि लड़ि रहल
श्वेदकण सँ सीचिंके ओ पेट सबहक भरि रहल

एक गज धरतीक टुकड़ा ओकरा नहिं अछि धर ल
दुधमुंहा नेना ओकर अछि नभकें नीचाँ जरि रहल

राति ओकर बीत जयतै सड़क वा फुटपाथ पर
शौच ल ओ कतय जयतै अहि सोचे डरि रहल

जय जवानक जय किसानक नारा की लगबै छलहुँ
सीमा पर आ खेतमे ओ नित एतय अछि मरि रहल

सप्तरंगी योजनामे कार्य बल तल्लीन अछि
ओ में जे अछि गरीब लेखे फाइलेमे सड़ि रहल।
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