936 bytes added,
00:51, 29 दिसम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजराजेश्वरी देवी ‘नलिनी’
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
शीघ्र सँजो दो स्नेह-सिक्त मृदु प्रेम-प्रदीपावलियाँ।
दीप्ति हो उठे जग, आलोकित हों जीवन की गलियाँ॥
धुल जावे विषाद-तम हो उल्लासों की रँगरँलियाँ।
स्नेहाभा से प्रभान्विता हो खिलें हृदय की कलियाँ॥
अन्तर्गृह में सत्वर शुचितम, स्नेह-प्रदीप सजा
उस स्वर्गिक अभिनव प्रकाश से दिव्यालोक जगा
</poem>