Changes

{{KKCatGhazal}}
<poem>
कंगाल हो गया हूँ मगर शान अभी है
क़िस्तों में मर रहा हूँ मगर जान अभी है
लहरों सा टूटता हॅू मैं जुड़ता हूँ बार-बार
दरिया से मिल सकूँ यही अरमान अभी है
 
जंगल को काट-काट के रस्ता तो कर लिया
लेकिन सफ़र में और भी व्यवधान अभी है
 
मेरा वही हमराज़ है, हमदर्द भी वही
फिर भी मेरे ग़मों से वो अन्जान अभी है
 
तू है तो मुश्किलें हज़ार भी हैं कुछ नहीं
तू है तो जिंदगी मेरी आसान अभी है
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits