Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कपिल भारद्वाज |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कपिल भारद्वाज
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
{{KKCatHaryanaviRachna}}
<poem>
यादों की चादर लपेटे,
हर शाम उतर जाता हूं, धुंध के आगोश में,
दूर टिमटिमाता एक दीया,
मेरी आँखों मे उतार देता है अपनी सारी रौशनी,
और मैं अपनी हंसी मिला देता हूं उसकी हंसी में ।

एक संगीत उभरता है फ़िज़ाओं में,
जो सबकी नजर में नहीं आता सबके कानों को नहीं भाता ।

एक दिन मेरा संगीत और उसकी रौशनी,
हवा में मिलकर विलीन हो जाएंगे,
तब हम बहुत याद आएंगे !
</poem>
445
edits