गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
काले-काले घोड़े / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
1,073 bytes added
,
18:19, 20 जनवरी 2019
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
पहुँच रहे मंजिल तक झटपट
काले-काले घोड़े
भगवा घोड़े खुरच रहे हैं
दीवारें मस्जिद की
हरे रंग के घोड़े खुरचें
दीवारें मंदिर की
जो सफ़ेद हैं
उन्हें सियासत
मार रही है कोड़े
गधे और खच्चर की हालत
मुझसे मत पूछो तुम
लटक रहा है बैल कुएँ में
क्यों
खुद ही सोचो तुम
गाय बिचारी
दूध बेचकर
खाने भर को जोड़े
है दिन रात सुनाई देती
इनकी टाप सभी को
लेकिन ख़ुफ़िया पुलिस अभी तक
ढूँढ न पाई इनको
घुड़सवार
काले घोड़ों ने
राजमहल तक छोड़े
</poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits