गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
भीड़ भरे इस चौराहे पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
918 bytes added
,
04:41, 21 जनवरी 2019
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
भीड़ भरे इस चौराहे पर
आज अचानक उसका मिलना
जैसे इंटरनेट पर यूँ ही
मिले पाठ्य पुस्तक की रचना
यूँ तो मेरे प्रश्नपत्र में
यह रचना भी आई थी
पर
इसके हल से कभी न मिलते
मुझको वे मनचाहे नंबर
सुंदर, सरल, कमाऊ भी था
तुलसी बाबा को हल करना
रचना थी ये मुक्तिबोध की
छोड़ गया पर भूल न पाया
आखिर इस चौराहे पर आकर
मैं इससे फिर टकराया
आई होती तभी समझ में
आज न घटती ये दुर्घटना
</poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits