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बहुत बड़ा परिवार मिला पर
सबका साथ निभाता है
इसीलिए तो बाँस-काफ़िला
आसमान तक जाता है
एक वर्ष में लगें फूल या
साठ वर्ष के बाद लगें
जब भी पुष्प लगें इसमें
सारे कुटुम्ब के साथ लगें
 
सबसे तेज़ उगो तुम
यह वर धरती माँ से पाता है
 
झुग्गी, मंडप इस पर टिकते
बने बाँसुरी, लाठी भी
कागज़, ईंधन, शहतीरें भी
डोली भी है अर्थी भी
 
सबसे इसकी यारी है
ये काम सभी के आता है
 
घास भले है
लेकिन ज़्यादातर वृक्षों से ऊँचा है
दुबला पतला है पर
लोहे से लोहा ले सकता है
 
सीना ताने खड़ा हुआ पर
सबको शीश झुकाता है
</poem>
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