Changes

{{KKCatNavgeet}}
<poem>
सड़कों पर बेच रही तंदूरी आग
मक्के की रोटी और सरसों का साग
इसको चख
आती है मिट्टी की याद
पकवानों पर भारी
है इसका स्वाद
 
गुड़ से तो
सदियों से इसका अनुराग
 
खा इसको
हल का फल होता है तेज
खेतों को कर देता
मक्खन की सेज
 
जिस पर सोकर
बीजक जाते हैं जाग
 
लड़ता है
भिड़ता है
मौसम से रोज़
लेता है
नित-नित ये जय अपनी खोज
 
यम-यम-यम करते हैं
आँगन, घर, बाग
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits