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|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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<poem>
अख़बार नहीं पढ़ा तो लगता है
कल प्रधानमंत्री ने हड़ताल की होगी

जीवन और मृत्यु के बारे में सोचते हैं जैसे हम
क्या प्रधानमंत्री को इस तरह सोचने की छूट है
क्या वह भी ढूँढ़ सकता है बरगद की छाँह
बच्चों की किलकारियाँ
एक औरत की छुअन

अगर सचमुच कल वह हड़ताल पर था
तो क्या किया उसने दिनभर
ढाबे में चल कर चाय कचौड़ी ली
या धक्कमधक्का करते हुए सामने की सीट पर बैठ
लेटेस्ट रीजीज़ हुई फ़िल्म देखी

वैसे उम्र ज़्यादा होने से सम्भव है कि ऐसा कुछ भी नहीं किया
घर पर ही बैठा होगा या सैर भी की हो तो कहीं बग़ीचे में
बहुत सम्भव है कि
उसने कविताएँ पढ़ी हों

कल दिन भर प्रधानमंत्री ने कविताएँ पढ़ी होंगी।

जब सचमुच थक जाता हूँ

मेरे आसमान में चाँद नहीं दिख रहा
बन्द कमरों में पढ़ते-पढ़ाते
एहसास अचानक आता
कोई नियम नहीं समझा सकता कि
मेरे आसमान में चाँद क्यों नहीं है

थकान और चाँद का सम्बन्ध है
अमावस में होती है या
पूरनमासी में अधिक
वैज्ञानिक मत होंगे थकान के बारे में

अव्वल तो थका हुआ आदमी
नहीं जानता कि चाँद आ ही जाए ग़लती से आसमान में
तो कैसे उसे थाम रखे
और मुन्ने को प्याली में दे न दे
उसे ज़रूर थाली में खीर खिलाए
थका हुआ आदमी धर आए चाँद को
नहीं बैठा सकता अपने पास

जब सचमुच थक जाता हूँ
ढूँढ़ता हूँ चाँद जो आसमान में नहीं होता
पर होता है आस-पास
मुहल्ले में या बाहर मटरगश्ती करता हुआ
गीत गाते कामगारों की शाम में झूमता हुआ।

</poem>
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