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20:02, 23 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
उफनती नदी के पास
एक औरत
हाथ में वायलिन
या कुछ ऐसा ही...
नंगे पाँव
घिरी छायाओं से अजूबा
और अंधकार बहुत-सा ऊपर मँडरता
और कुछ रंग
अंधकार होने से बचे हुए
औरत, हालाँकि
उजाले में है अब भी
स्याह होती हुई
</poem>