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20:23, 23 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
सिर झुकाए
वह रखता है अगला क़दम,
कम से कम उतनी जगह साफ़
निष्कंट हो जहाँ धरना है पाँव
दूर की चीज़ों के लिए
अवकाश नहीं अभी;
सबसे पास पड़ता है पेट
देह से लगा हुआ...
</poem>