501 bytes added,
20:49, 23 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सुनने देखने
और महसूस करने से भरा है
सोचने को सारा कारोबार,
सिर का गट्ठर
यह इतना बोझ भरा
कि मैं उड़ नहीं सकता
पक्षी की तरह
निपट आकाश में।
</poem>