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<poem>
रंग पर चट्टानें थीं
चट्टानों के रंग थे
और परछाइयाँ दूर तक जातीं
अधसोयी देह उठ-जागी
बिस्तर पर रात बची है
दीवारों में चट्टानें हैं-
अभी तक देह की परछाइयाँ
जाती हैं रंगों की छाया में।

</poem>
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