941 bytes added,
20:54, 23 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वे वहीं रहते हैं
हमारे पास;
पड़ोस में जो घर हैं,
उनके चेहरे दीखते और छिपते हैं
दीवारों के पार,
उनके दुख और सुख भी अक्सर
वे लेते और देते हैं उन्हें
जंगलों, खिड़कियों और दरवाज़ों की दहलीज पर
पहरों चलता है उनका संवाद
व्यथा के बीच
लम्बी हो जाती है कथा
छूट जाता है रोना-धोना
जब अचानक याद आता है घर
देर से छूटा हुआ।
</poem>