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|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
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<poem>
ढ़ूँढ़ा है हर जगह पे कहीं पर नहीं मिला
ग़म से तो गहरा कोई समंदर नहीं मिला

ये तजुर्बा हुआ है मुहब्बत की राह में
खोकर मिला जो हमको वो पाकर नहीं मिला

दहलीज अपनी छोड़ दी जिसने भी एक बार
दीवारो दर ही उसको मिले घर नहीं मिला

दूरी वही है अब भी करीबी के बावजूद
मिलना उसे जहाँ था वहाँ पर नहीं मिला

सारी चमक हमारे पसीने की है जनाब
विरसे में हमको कोई भी ज़ेवर नहीं मिला
घर से हमारी आँख-मिचौली रही सदा
आँगन नहीं मिला तो कभी दर नहीं मिला
</poem>