1,183 bytes added,
04:52, 25 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ख़ुशनुमाई देखना ना क़द किसी का देखना
बात पेड़ों की कभी आए तो साया देखना
ख़ूबियाँ पीतल में भी ले आती है कारीगरी
जौहरी की आँख से हर एक गहना देखना
झूठ के बाज़ार में ऐसा नज़र आता है सच
पत्थरों के बाद जैसे कोई शीशा देखना
ज़िंदगानी इस तरह है आजकल तेरे बग़ैर
फ़ासले से कोई मेला जैसे तन्हा देखना
देखना आसाँ हैं दुनिया का तमाशा साहबान
है बहुत मुश्किल मगर अपना तमाशा देखना
</poem>