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|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
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<poem>
ख़ुशबुओं से चमन भरा जाए
काम फूलों सा कुछ किया जाए

ग़म पे यूँ मुस्कुरा दिया जाए
वक़्त भी सोचता हुआ जाए

हर हथेली में ये लकीरें हैं
क्या किया जाए क्या किया जाए

फूल आगाह करते हैं हमको
फूलों में फूल सा रहा जाए

अब तो कपड़ों में भी दिखे नंगा
कैसे इंसान को ढँका जाए

सबकी चिंता है उसको मेरे सिवा
आज रब से ज़रा लड़ा जाए
</poem>