796 bytes added,
04:29, 27 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रात को मोअतबर बनाने में
सब हैं मसरुफ़ डर बनाने में
ज़ख़्म दिन भर कुरेदे जाते हैं
एक ताज़ा ख़बर बनाने में
सारी बस्ती उजाड़ के रख दी
आपने अपना घर बनाने में
फ़ैसला दर्द के ख़िलाफ़ रहा
आपको चारागर बनाने में
दिल की बर्बादियों का हाथ रहा
शायरी को हुनर बनाने में
</poem>